Sunday 23 July 2017



मगही में "ङ", "ड़" आउ "र्" के प्रयोग।

हिंदी में वर्तनी के एकरूपता के नाम पर "ङ" वर्ण के प्रयोग लगभग उठ रहले हे, खास करके कंप्यूटर टेक्नोलॉजी अयला के बाद। सिर्फ संस्कृत बैकग्राउंड वला लोग संस्कृतनिष्ठ शब्द में एकर प्रयोग करऽ हथिन। काहे कि अखबार के दुनियाँ में जादे तर एकर जगह पर अनुस्वार (ं) के प्रयोग होवऽ है। संस्कृत में एकर कठोरता से पालन होवऽ है। जइसे - "कलिङ्ग", "गङ्गा", बङ्ग आउ जइसन शब्द में धड़ल्ले से होवऽ है।
इहे तरह मगही जइसन लोकभाषा में भी एकर प्रयोग बिना सैंकड़ो शब्द के उच्चारण ठीक से नञ् हो पइतइ। मगही साहित्य के फोनोलॉजी के थोड़े सा ज्ञान रखे वला के नीचे जउन शब्दन के चरचा कर रहलिए हे ओकरा बारे में कोय उफास नञ् लगतइ। एहाँ ई बात जरूरी समझऽ हिऐ कि मैथिली एकर प्रयोग धड़ल्ले से होवऽ है। जइसे - "अङना" (सं.) = आंगन , अङाएब (क्रि.) = ; अङिया (सं.) = कंचुकी; चोली; अङुरी (सं.) = अंगुली; अङेजब (क्रि.) = सामंजस्य स्थापित करना; अङैठीमोड़ (सं.) = ज्वर का आगमन; अङोछ (सं.) = छवि। ॰ मैथिली शब्द कल्पद्रुम. संपादकः पं. मतिनाथ मिश्र "मतंग" (पृष्ठ-7) ॰ कल्यानी कोश . संपादकः पं. गोविंद झा (पृष्ठ-7); ॰ बृहत् मैथिली कोश . संपादकः श्री जयकांत मिश्र (खंड-1, पृष्ठ-30)

 "ङ", "ङ्"

अछरङ
अङनबाड़ी
अङना
अङनैतिन
अङनैती
अङरेज
अङरेजी
अङाना
अङाल
अङुठा
अङुरकट्टा
अङुरलग्गा
अङुरी
अङेजना
अङेया
अङैठी
अङोछना
अवढङहिया
अवढङाह
अवढङाहा
अवढङाही
आङी-टोपी
आङे
इङरउटी
इड़िङ-विड़िङ
उटपटाङ
उङरी
ओठङघन
ओठङघल
ओठङन
ओठङना
ओठङल
खड़ङाह
खड़ङाहा
खड़ङाही
गङउट
गङतिरिया
गङौट
गोङ
गोङा
गोङिअहवा
गोङिअहिया
गोङिआह
गोङिआहा
गोङिआही
गोङी
घोङघच
घोङघचना
घोङघचल
घोङची
घोङघचाना
घोङघच्चा
चङेरी
चाङड़
चाङड़ा
चिङुरना
चिङुरल
चेङना (सं.)
चेङा
चेङी
चौरङ
जङला
जङलिया
जङली
झरङा
टङना (सं.)
टङना (अ.क्रि.)
टङनी
टङरी
टङल
टङाना
टङारी
टाङ
टाङना (स.क्रि)
टाङी
टिङना
टुङना (सं.)
टुङना (स.क्रि)
टुङल (वि.)
टुङाना (स.क्रि)
टेङरा
टेङारी
ठेङा
ठोङा
ठोङ्घा
डङाल
डाङ
डेङाना
डेङी
ढङ
ढेङराना
ढेङार
ढोङ
ढोङी
ढोर-डाङर
डेङाना
डेङी
डेङौनी
तिड़ङ्
तिड़ङाह
तिड़ङाहा
तिड़ङाही
तिड़ङ्ल
दङलिया
दङली
धड़ाङ्
धड़िङ्
धरङा
धङाना
धाङना
धाङल
परङा
पाङना
पुङना
बरङाही
भङघोटना
भङघोटनी
भङपीवा
भङरइया
भङलहवा
भङलहिया
भङलाह
भङलाहा
भङलाही
भङेड़ी
मुङड़ा
मुङड़ी आदि

   " ड़"

ड़ँड़सार
ड़ड़घौंज
ड़ड़तउरी
ड़ड़तौरी
ड़ड़पनई
ड़ड़पना
ड़ड़पनी
ड़ड़पाना
ड़ड़हा
ड़ड़िनियाँ
ड़हड़ी
ड़ाँड़
ड़ाँड़ी
ड़ाड़
ड़ाड़ीन
ड़ेंड़
ड़ेंड़ी
ड़ोड़ा
ड़ोड़ा-ड़ोड़ी
ड़ोड़बाजी
ड़ोड़ेबाजी
ड़ोड़िआना
ड़ोड़ी

मगही में "र् +ह = र्ह " के प्रयोग।

एर्ह
एर्हना
एर्हनी
खेर्ह
बर्हामन
बर्हामनी
बिर्हनी
मेर्ह

3 comments:

  1. मगही के "र्+ह" के महाप्राण रूप [जइसे कि 'खेर्ह' (तिनका अर्थ में)] के बारे हम तकनीकी-हिन्दी चर्चा समूह में छो साल पहिलहीं चर्चा लगी प्रस्युत कइलिए हल (देखल जाय - https://groups.google.com/forum/#!topic/technical-hindi/wmUI3D914VA )। हम एकरा लगी एगो स्वतंत्र वर्ण गढ़े के बारे भी सोचलिए हल । हियाँ तक कि एकरा लगी फ़ोंट डिज़ाइनर के बारे भी पूछताछ कइलिए हल । जब तक स्वतंत्र वर्ण के मान्यता प्राप्त आउ निर्माण नञ् होवऽ हइ, तब तक मराठी में प्रयुक्त निराघात रफार " र्‍ " के प्रयोग कइल जा सकऽ हइ । मराठी में एकर प्रयोग ह आउ य के साथ कइल जा हइ, जइसे - शेतकर्‍या (कृषक लोग), बर्‍हाड (बरात), जेकरा शेतकर्या, बर्हाड नञ् लिक्खल जा सकऽ हइ ।

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  2. नारायण सर,
    नमस्कार!
    "मगही-हिंदी कोश के प्रारंभिक चरण में जब हमरा ई संबंध में जादे दिक्कत होवे लगलइ त हम 1992 के अगस्त महीना में पं. विद्यानिवास मिश्र जी से मिललिऐ, जे देश के जानल-मानल विद्वान आउ कोशकार मानल जा हलथिन। शुरू में उनका हमर बात जरी कम दिक्कत वला लगलइ, बकि जब हम "मगही" ई सब शब्द बोल के सुनइलिऐ त पुछलथिन - "अभी कैसे लिख रहे हो?" हम जब "र्" वला बात बतैलिए त ऊ तत्काल अपन सहमति दे देलथिन आउ हमर पीठ ठोकलथिन।
    इहे तरह "वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली" द्वारा प्रकाशित होवे वला 20 से ऊपर शब्द कोश के संपादन करे वला श्री नरेंद्र व्यास जी के भी हमर बात पसंद अयलइ। हमर अपन "बृहत् मगही-हिंदी कोश" के भूमिका में ई बात के चरचा लइलिए हे।
    रहलइ बात मराठी के त हर भाषा के अपन प्रकृति होवऽ है, संयोग से अपने के उदाहरण हम जे उच्चारण करऽ हिऐ ओकरा से मेल नञ् खा है। अबरी जब अपने बिहार अयथिन त हम अपने के अपन इलाका जरूर घुमइबइ। फेर हमनहीं ई दिशा में आगे बढ़बइ।
    आभार अपने के!

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  3. बहुत सराहनिय काम

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